Monday 24 July 2017

अब होगा ताज महल के पीलेपन का इलाज, लौटेगी सुंदरता

आगरा (जागरण संवाददाता)। दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताज। प्रदूषण की कालिख से ताज के धवल सौंदर्य पर पीलेपन के दाग लगे, तो पूरा देश चिंतित हो उठा। मुल्तानी मिट्टी का लेप (मडपैक) कर उसका उपचार किया जा रहा है, लेकिन प्रदूषण लाइलाज है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रसायन शाखा इसके कारणों की पहचान को जांच में जुटी है। इसमें अब वह आइआइटी और वाडिया इंस्टीट्यूट, देहरादून की भी मदद लेगी।
प्रदूषण से ताज को बचाने के लिए दो दशक पूर्व ताज टिपेजियम जोन (टीटीजेड) बनाया गया था। हरियाली पर जोर देने के साथ प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद कराया गया या शिफ्ट किया गया। हालात इसके बाद भी नहीं सुधरे। अप्रैल, 2015 में संसद की पर्यावरण संबंधी स्थाई समिति ने ताज का निरीक्षण कर कंपोजिट प्लान बनाने के निर्देश दिए। इसके बाद ताज पर मडपैक ट्रीटमेंट शुरू किया गया।
अधीक्षण पुरातत्वज्ञ रसायन डॉ. एमके भटनागर बताते हैं कि अध्ययन रिपोर्ट को अधिक प्रभावी बनाने के लिए हम इसका साइंटिफिक क्रॉस चेक आइआइटी और वाडिया इंस्टीट्यूट से कराने का प्रयास कर रहे हैं।
2014 में सामने आया था सच: जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी अटलांटा, अमेरिका, आइआइटी कानपुर और एएसआइ की रसायन शाखा ने नवंबर 2011 से दिसंबर, 2012 तक ताज में अध्ययन किया था। इसमें ताज की सतह पर 55 फीसद धूल कण, 35 फीसद ब्राउन कार्बन कण और 10 फीसद ब्लैक कार्बन कण पाए गए थे।
डीजल वाहन और उपले भी वजह: अध्ययन में यह माना गया था कि ताज के समीप डीजल वाहनों के चलने और उपले जलने से कार्बन कण स्मारक तक पहुंच रहे हैं। ताज के धवल सौंदर्य को बरकरार रखने को तीन वर्ष के अंतराल पर मडपैक ट्रीटमेंट की आवश्यकता बताई गई थी।

Source:-Jagran
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